Saturday, December 19, 2009

रणेन्द्र का उपन्यास- ग्लोबल गांव के देवता -------------------- विष्णु राजगढ़िया सिंगूर, लालगढ़, सलवा जुड़ुम और आपरेशन ग्रीन हंट के इस दौर में कवि, विचारक एवं कथाकार रणेन्द्र का उपन्यास आया है- ग्लोबल गांव के देवता । यह सामयिक जटिलताओं और वर्तमान चुनौतियों व बहसों की साहित्यिक प्रस्तुति भर नहीं है। इसमें मानव समाज की उत्पत्ति से विकासक्रम में बेहतरी की अदम्य तलाश एवं निरंतर कठिन श्रम के जरिये विशिष्ट एवं युगांतकारी योगदान करने वाले समुदायों एवं खासकर जनजातियों को कालांतर में निरंतर हाशिये पर धकेल दिये जाने की ऐतिहासिक समझ भी मिलती है। इस रूप में देखें तो इसमें अतीत की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर वर्तमान की चुनौतियों को समझने की कोशिश की गयी है। साथ ही यह पूंजी की पोषक सत्ता द्वारा जनजातियों को निरंतर वंचित करने के षड़यंत्रों को ग्लोबल फलक से उठाकर गांव के स्तर तक लाते हैं। इस तरह यह अतीत के साथ वर्तमान और ग्लोबल के साथ लोकल के सहज सामंजन का खूबसूरत उदाहरण है। रणेन्द्र का यह उपन्यास आधुनिक भारत में जनजातियों के लिए उत्पन्न अस्तित्व-मात्र के संकट के साथ ही जनप्रतिरोध की विविध धाराओं के उदय एवं उनकी जटिलताओं की सांकेतिक रूपों में महत्वपूर्ण प्रस्तुति करता है। ग्लोबल देवताओं को खनिज की भूख है और उनकी भूख मिटाने के लिए जनजातियों को जमीन से बेदखल करना जरूरी है। भारत सरकार को भी जनजातियों से ज्यादा जरूरी भेड़िये को बचाना है। आदिवासियों के विस्थापन और इसके खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध से लेकर हिंसक प्रतिरोध तक की स्थितियों को सामने लाने के लिए रणेन्द्र ने असुर जनजाति को केंद्र में रखा है। आग और धातु की खोज करने वाली] धातु को पिघलाकर उसे आकार देने वाली कारीगर असुर जाति को मानव सभ्यता के विकासक्रम में हाशिये पर धकेल दिये जाने और अब अंततः पूरी तरह विस्थापित करके अस्तित्व ही मिटा डालने की साजिश इस उपन्यास में सामने आती है। उपन्यासकार बाहर से गये एक संवेदनशील युवा उत्साही स्कूली शिक्षक के बतौर इस जनजाति के सुख-दुख और जीवन-संघर्षों में खुद को स्वाभाविक तौर पर हर पल शामिल पाता है। इस दौरान वह असुर जनजाति के संबंध में कई मिथकों एवं गलत धारणाओं की असलियत को समझता है, वहीं ऐतिहासिक कालक्रम में इस जनजाति के खिलाफ साजिशों की ऐतिहासिक समझ भी हासिल करता है। दरअसल यही समझ उसे इन संघर्षों में शरीक होने की प्रेरणा देता है। उसे लालचन असुर के रूप में खूब गोरा-चिट्टा आदमी मिलता है जबकि उसकी धारणा में असुर लोग खूब लंबे-चैड़े, काले-कलूटे भयानक लोग थे। छरहरी-सलोनी पियुन एतवारी भी असुर है, यह जानकर भी युवा शिक्षक चकित है। जल्द ही असुर लोगों के ज्ञान व समझ को लेकर गलत धारणाएं भी मिट जाती हैं। समुदाय के सुख-दुख में भागीदार उपन्यासकार जहां धीरे-धीरे असुर जनजाति के खिलाफ सदियों से चली आ रही साजिशों को समझता जाता है, वहीं इलाके में बाक्साइड के रूप में मौजूद कीमती खनिज की लूटखसोट के लिए देशी-विदेशी पूंजी के हथकंडों और हमलों के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा बनता है। अहिंसक, शांतिपूर्ण याचनाएं अनसुनी कर दी जाती है और शिवदास बाबा का कराया समझौता लागू होने के बजाय आंदोलन को बिखरने का षड़यंत्र ही साबित होता है। असुरों को उजाड़ने की साजिश के खिलाफ रुमझुम असुर का प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखता है- भेड़िया अभयारण्य से कीमती भेड़िये जरूर बच जायेंगे श्रीमान्, किंतु हमारी असुर जाति नष्ट हो जायेगी....। लेकिन ऐसे पत्र आंदोलनकारियों पर पुलिस हमले नहीं रोक पाते और छह मृतकों को पुलिस मुठभेड़ में मारे गये नक्सली की संज्ञा मिलती है। बिना पुनर्वास और बिना मुआवजे के 37 गांवों में सदियों से रहने वाले हजारो परिवार आखिर कहां जायें] इसका जवाब किसी के पास नहीं। उल्टे, ऐसे सवाल उठाने वालों के लहू से धरती लाल हो जाती है और यूनिवर्सिटी हास्टल से सुनील असुर के रूप में एक नयी शक्ति सामने आती है। आंदोलन की विविध धाराओं की जटिलताओं और सवालों को सामने लाकर उपन्यास ढेर सारे सवाल छोड़ जाता है। उपन्यासकार के सामने निश्चय ही यह चुनौती रही होगी कि पाठकों को असुर जनजाति के विकासक्रम की जटिलताओं के संबंध में प्रामाणिक तथ्यों की प्रस्तुति करके हुए मानवशाष्त्रीय एवं ऐतिहासिक पहलुओं का विवरण कहीं इसे बोझिल नहीं बना दे। इसके साथ ही, विभिन्न रीति-रिवाजों एवं अंधविश्वासों का विवरण भी उपन्यास को जनजातीय समाजशास्त्र की पुस्तक में बदल सकता था। ऐसे खतरे उठाते हुए रणेन्द्र ने कथ्य और शिल्प दोनों स्तर पर संतुलन बनाते हुए उपन्यास को रोचक बनाये रखा। ऐसे एक व्यापक फलक को लेकर चलते हुए उपन्यासकार ने ललिता जैसी पात्र के भावुक प्रसंगों के लिए भी गुंजाइश निकालकर अपनी लेखन क्षमता एवं कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। इस उपन्यास के लिए भाई रणेन्द्र को बधाई। आप भी उन्हें 094313-91171 नंबर पर बधाई दे सकते हैं। ----------------- उपन्यास-परिचय रणेन्द्र ग्लोबल गांव के देवता भारतीय ज्ञानपीठ पृष्ठ- 100 वर्ष- 2009 ----------------------------------

Sunday, November 22, 2009

आनलाइन हस्ताक्षर करके विरोध जतायें विष्णु राजगढ़िया बिहार में सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने की काफी शिकायतें आ रही हैं। अब बिहार सरकार ने सूचना पाने के नियमों में अवैध संशोधन करके एक आवेदन पर महज एक सूचना देने का नियम बनाया है। अब गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सिर्फ दस पेज की सूचना निशुल्क मिलेगी, इससे अधिक पेज के लिए राशि जमा करनी होगी। ऐसे नियम पूरे देश के किसी राज्य में नहीं हैं। ऐसे नियम सूचना कानून विरोधी हैं। इससे सूचना मांगने वाले नागरिक हताश होंगे। इससे नौकरशाही की मनमानी बढ़ेगी। इस तरह बिहार सरकार ने सूचना कानून के खिलाफ गहरी साजिश की है। अगर सूचना पाने के नियमों में संशोधन हुआ तो नागरिकों को सूचना पाने के इस महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित होना पड़ेगा। एक समय बिहार को आंदोलन का प्रतीक माना जाता था। आज सूचना कानून के मामले में बिहार पूरे देश में सबसे लाचार और बेबस राज्य नजर आ रहा है। वहां सुशासन की बात करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दुशासन की भूमिका निभाते हुए कुशासन को बढ़ाना देने के लिए सूचना कानून को कमजोर किया है। इसलिए आनलाइन पिटिशन पर हस्ताक्षर करके अपना विरोध अवश्य दर्ज करायें। इसके लिए यहां क्लिक करें- संशोधन के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें http://mohallalive.com/2009/11/19/nitish-government-changed-right-to-information-act/

Thursday, November 19, 2009

सूचना के अधिकार पर अत्याचार? मणिकांत ठाकुर बीबीसी संवाददाता, पटना सूचना का अधिकार अधिनियम 2005. बिहार में इस क़ानून के तहत सूचना मांगने वाले लोगों पर भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचार का डंडा बरसने लगा है. यहाँ पंचायत स्तर से लेकर सरकारी विभागों के स्तर तक इस मामले में प्रताड़ना के कई मामले सामने आ चुके हैं. सरकारी योजनाओं में बरती गई अनियमितताओं को दबाने-छिपाने वाला अधिकारी या कर्मचारी वर्ग यहाँ लोगों के सूचना-अधिकार के ख़िलाफ़ हमलावर रुख़ अपना चुका है. बिहार में तीन साल पहले इस अधिनियम को लागू करते समय दिखने वाली सरकारी तत्परता की देश भर में सराहना हुई थी. आज स्थिति उलट गई लगती है. कारण है कि अब इसी राज्य में नागरिकों के सूचना-अधिकार का हनन सबसे ज़्यादा हो रहा है. दूसरी ओर शिकायतों की भरमार से घबराए मुख्यमंत्री ने कुछ फौरी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर- 2219435 जारी करते हुए ख़ुद टेलिफ़ोन पर पहली शिकायत (संख्या 001) दर्ज कराई. टेलिफ़ोन पर मुख्यमंत्री ने लिखाया- मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना मिली है कि वीरेंद्र महतो, ग्राम- कसियोना, पंचायत- करैया पूर्वी, प्रखंड- राजनगर, ज़िला- मधुबनी द्वारा करैया के प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी से जन वितरण प्रणाली की दुकानों में राशन- किरासन आपूर्ति का ब्यौरा माँगा गया था. इस पर उनको धमकी दी गई, जो राजनगर पुलिस थाना में केस संख्या 181/09 दिनांक 10-08-09 दर्ज किया गया है. इस मामले की पूरी जांच करके मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना दी जाए. समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर एक नरम किस्म की ही शिकायत दर्ज कराई. गंभीर किस्म की शिकायतें तो आम लोगों के बीच जाने पर मिलती हैं. कहीं मुखिया और पंचायत सेवक, तो कहीं प्रखंड, अनुमंडल और ज़िला स्तरीय पदाधिकारी सरकारी योजना राशि में लूट मचाते हुए मिलते हैं. लेकिन इन्हें पकड़ेगा कौन? सब जानते हैं कि नीचे से ऊपर तक का सरकारी महकमा लूट में शामिल रहता है. ऐसे में सूचना के अधिकार के तहत कोई आम आदमी अगर घोटाले का राज़ खोलने वाली जानकारी मांगेगा तो लुटेरों के बीच खलबली होगी ही. राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त अशोक कुमार चौधरी फिर भी नहीं मानते कि कोई लोक सूचना पदाधिकारी किसी सूचना माँगने वाले को जेल भेजने की धमकी देता होगा या किसी सरकारी फ़ाइल को ग़ायब करता होगा. लेकिन उन्होंने कुछ शिकायतों को स्वीकार करते हुए कहा, "इस क़ानून के प्रावधानों की सही समझ अभी पूरी तरह न तो लोक सेवकों में है और न ही सूचना मांगनेवाले लोगों में. सबकुछ दुरुस्त होने में कुछ वक़्त लगेगा. जहाँ तक प्रताड़ना कि बात है तो ऐसी निश्चित और सही शिकायत अगर आयोग को मिलेगी तो उसे कार्रवाई के लिए सरकार के पास ज़रूर भेजा जाएगा." सूचना अधिकार मामलों से जुड़ी एक गैर सरकारी संस्था की प्रमुख परवीन अमानुल्लाह का कहना है कि भ्रष्ट सरकारी अफ़सरों और कर्मचारियों का ऐसा गिरोह बन गया है, जो इस क़ानून को बेअसर बनाने पर तुला हुआ है. परवीन कहती हैं, "अगर कोई आम आदमी सूचना पाने के अपने हक़ का डटकर इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे डरा-धमका कर ख़ामोश करानेवाले सरकारी अधिकारी फ़ौरन सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए दोषी पाए जाने पर भी उन पर सख़्त कार्रवाई नहीं होती. मैंने 45 ऐसे मामलों की जानकारी राज्य सरकार को बहुत पहले दी थी, लेकिन उस पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ." यहाँ उल्लेखनीय है कि परवीन अमानुल्लाह बिहार के एक बड़े आईएएस अधिकारी अफज़ल अमानुल्लाह की पत्नी हैं. इन्होंने एक भेटवार्ता में बीबीसी से खुलकर कहा कि राज्य की शासन व्यवस्था में भारी गड़बड़ी है और यहाँ अधिकांश नौकरशाह भ्रष्ट हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने भाषणों में ज़रूर कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है और मालिक की मांगी गई सूचना नहीं देने वाले नौकर यानी अधिकारी बख्शे नहीं जाएँगे. लेकिन होता है उल्टा. प्रताड़ित जनता हो रही है और नेता-अधिकारी फल-फूल रहे हैं. http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/11/091121_bihar_rti_pp.shtml?s

Monday, November 16, 2009

SAVE RTI CAMPAIGN Please Sign Two Online Petitions to Save RTI
  • Petition for Transparent Selection of CIC
http://www.petitiononline.com/aishu/petition.html
  • Petition against Amendment in RTI Act
http://www.petitiononline.com/urvashi/petition.html

Wednesday, October 21, 2009

A milestone : Nandini Sahai in seminar on RTI July 2, 2006, Hotel Capitol Hill, Ranchi
on dias- Mr. AA Khan, VC, Ranchi University, Mr. T. Nandkumar, Senior IAS, Mr. Raghuvar Das, Minister for Finance and Urban Development, Mr. Mukhtiyar Singh, Senior IAS
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The Seminar was organised by Vishnu Rajgadia, on behalf of Prabhat Khabar

Congratulations

Nandini Sahai joins as Director & Chief Executive of The International Centre, Goa Nandini Sahai joined as the Director & Chief Executive of The International Centre, Goa (ICG) last week. She is the fourth, as well as the first woman Director of the International Centre, Goa. Her vision is to make ICG into a completely holistic place of international standards, where ideational as well as other activities take place in a world class ambience. Nandini Sahai has been a distinguished development journalist with more than 30 years of experience having started her career with the Press Institute of India. For her, journalism was not a profession but a passion and a powerful tool for social development. She founded MICCI (Media Information and Communication Centre of India) with the support of some like-minded academicians, bureaucrats, media and communication experts, and was also the Country Manager of AMIC-India, a subsidiary of AMIC (Asian Media and Information Centre), a Singapore-based International NGO working in media related issues. She is one of the leading Right to Information (RTI) advocates having organized a number of public hearings, seminars and workshops for the RTI movement in India & Sri Lanka and has also worked closely with Magsaysay Award winner Aruna Roy. She was also the member of the Select Committee in formulating the RTI Act for the Delhi Government. Her two advocacy workshops, one on 'Contempt of Court' where Truth was made as defence and another on the 'Broadcasting Bill' where the Government stalled the Bill and formed the NBA (National Broadcasting Association) to formulate the Content Code, have been path breaking. She has also worked closely on a number of issues relating to Media, Social Development, Disaster Management, Rural Journalism and the Judiciary, with international organisations such as UNESCO, Friedrich Ebert Stiftung (FES) - India, (AIBD) (Asia-Pacific Institute for Broadcasting Development, Malaysia), the International Rehabilitation Council for Torture Victims (IRCT) on issues of Torture and Human Rights. She has organised several seminars with senior media persons from India and South Asia on issues of media and public interest in South Asia. She is widely travelled and has also addressed a seminar in Stanford University, USA, on the benefits of Community Radio. Her family consists of her two children who are working in Delhi. In her free time she likes to read and listen to music. Thanks and regards, Arjun Halarnkar
Programme Manager
The International Centre, Goa
Goa University Road, Dona Paula, Goa 403004
INDIA Tel: +91 832 2452805-10 Fax: +91 832 2452812
Cell: +91 9765404391 http://www.goadialogues.com/

Tuesday, October 6, 2009

INVITATION

You are cordially invited to attend Regional Seminar on Converting Electoral Democracy into Participatory Democracy: Role of RTI Organised by Media Information and Communication Centre of India (MICCI), Friedrich Ebert Stiftung (FES) and Jharkhand RTI Forum 10-12 October 2009, at 9.30 am, Hotel Chinar, Main Road, Ranchi 50 Citizens of Jharkhand will also be Honoured with RTI Citizen Award during the Seminar RSVP Dr. Vishnu Rajgadia, State Chapter Head, MICCI Balram, President, Jharkhand RTI Forum

Monday, October 5, 2009

पचास नागरिकों को आरटीआइ सिटीजन अवार्ड विष्णु राजगढ़िया झारखंड आरटीआइ फोरम ने आरटीआइ सिटीजन अवार्ड के लिए पचास नागरिकों का चयन किया है। इन्हें सूचनाधिकार की चैथी वर्षगांठ पर आरटीआइ सप्ताह के दौरान 11 अक्तूबर 2009 को होटल चिनार, रांची में सम्मानित किया जायेगा। इनमें कई पूर्व विधायक, पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। सूची इस प्रकार है- श्री रमेंद्र कुमार, श्री सरयू राय, श्री रामचंद्र केसरी, श्री विनोद कुमार सिंह, श्री अरूप चटर्जी, श्री लक्ष्मण गिलुआ, श्री गंगा टाना भगत, श्री रामजीलाल सारडा, श्री विक्की कुमार, सुश्री रंजू कुमारी, श्री प्रकाशचंद्र चंदन, श्री कृपासिंधु बच्चन, मो. अनवर, श्रीमती सावित्री देवी, श्री बिंदुभूषण दुबे, श्री बुधु सिंह, श्रीमती आशा देवी, श्री दीपक लोहिया, श्री राणा प्रताप, डाॅ पीसी राम, श्री रामानुज प्रसाद, श्री अमरेंद्र कुमार, श्री सुनील महतो, श्री अमित झा, श्री प्रकाष हेतमसरिया, श्री कमल अग्रवाल, श्री विनोद ठाकुर, श्री संदीप आनंद, श्री कृष्ण मुरारी शर्मा, श्री अरूण कुमार सिंह, श्री ललित बाजला, श्री एके जैन, श्री रंजीत कुमार सिंह, श्री राजकुमार मुरारका, श्री रणधीर निधि, श्री संजीत अग्रवाल, श्री शशिभूषण पाठक, श्री कुंदन गोप, ओमप्रकाश चैधरी, श्री मनोज नारसरिया, मोहम्मद जफर आलम, श्री ओमप्रकाश पाठक, श्री आरके नीरद, श्री आनंद किशोर पंडा, श्री श्यामबली प्रसाद, श्री जयसिंह पूर्ति, श्री सुखलाल, श्री केदारनाथ लाल दास, श्री देवनंदन प्रसाद, श्री संजय नगदुआर।

Sunday, September 27, 2009

बंगाल पुलिस ने मीडिया के नाम पर विश्वासघात किया प्रधानमंत्री के नाम आनलाइन हस्ताक्षर द्वारा विरोध करें पश्चिम बंगाल की सीआइडी पुलिस ने मीडिया के नाम पर विश्वासघात किया है। लालगढ़ आंदोलन के चर्चित नेता छत्रधर महतो को पकड़ने के लिए पुलिस ने पत्रकार का वेश बनाकर ऐसा किया। एक पुलिस अधिकारी ने खुद को एशियन न्यूज एजेंसी, सिंगापुर का संवाददाता अनिल मयी बताया। उसने पहले एक स्थानीय पत्रकार का विश्वास जीता। फिर उसके साथ जाकर छत्रधर महतो का साक्षात्कार लेने के बहाने 26 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया।यह मीडिया के प्रति लोगों के भरोसे की हत्या है। यह मीडिया की स्वायत्ता का अतिक्रमण है। यह बेहद शर्मनाक, आपत्तिजनक एवं अक्षम्य अपराध है। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए ताकि दुबारा कोई ऐसी हरकत न करे। इस संबंध में तत्काल एक स्पष्ट कानून बनाया जाना चाहिए। कृपया अपना विरोध दर्ज करायें। यहां क्लिक करके प्रधानमंत्री के नाम पत्र पर आनलाइन हस्ताक्षर करें http://www.petitiononline.com/wbmisuse/petition.html पूरी स्टोरी

Sunday, September 13, 2009

बिजली संकट पर पीएमओ चिंतित, ऊर्जा मंत्रालय को इसका पता नहीं सूचना के अधिकार से हुआ खुलासा एनडीए शासन में ऊर्जा क्षेत्र सुधरा, यूपीए का कार्यकाल यानी 'अवसर गंवाने का आधा दशक' विष्णु राजगढ़िया रांची : देश में गहराते विद्युत संकट और ऊर्जा मंत्रालय के घटिया प्रदर्शन से प्रधानमंत्री कार्यालय चिंतित है। इसके लिए पिछले दिनों प्रधानमंत्री के साथ ऊर्जामंत्री की एक उच्चस्तरीय बैठक का भी प्रस्ताव रखा गया था। इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी आंतरिक पत्र में ऊर्जा मंत्रालय को संवदेनशील बनाने की जरूरत बतायी गयी है। दूसरी ओर, ऊर्जा मंत्रालय ने इस पर अनभिज्ञता प्रकट करके नये विवादों को जन्म दिया है। पटियाला निवासी गुरनेक सिंह बरार ने सूचना का अधिकार के अंतर्गत उस आंतरिक पत्र की प्रतिलिपि मांगी थी। श्री बरार ने प्रधानमंत्री कार्यालय तथा ऊर्जा मंत्रालय, दोनों से सूचना मांगी। ऊर्जा मंत्रालय ने 28 जुलाई 2009 को ऐसे किसी आंतरिक पत्र के संबंध में अनभिज्ञता प्रकट की। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने आठ सितंबर को उस पत्र की प्रतिलिपि उपलब्ध करा दी है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने 30 जून 2009 को अपने आंतरिक पत्र में गंभीर ऊर्जा संकट को लेकर यूपीए सरकार की विफलता का खुलकर वर्णन किया है। पत्र के अनुसार वर्ष 2004-05 में प्रारंभिक सकारात्मक प्रगति के बाद ऊर्जा मंत्रालय सुधार की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाया। जबकि 1998 से 2003 के बीच ऊर्जा मंत्रालय ने सुधार की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। पत्र के अनुसार बाद के पांच वर्षों को सिर्फ 'अवसर गंवाने का आधा दशक ही कहा जायेगा। पीएमओ के इस पत्र के अनुसार दसवीं पंचवर्षीय योजना में 44000 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य था, जिसका आधा भी हासिल नहीं किया जा सका। इसके बावजूद ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 78000 मेगावाट का अत्यधिक बड़ा एवं बेतुका लक्ष्य ले लिया गया। जून 2009 तक मात्र 15000 मेगावाट क्षमता बढ़ायी जा सकी है। स्पष्ट है कि ग्यारहवीं योजना के अंत तक लक्ष्य का बड़ा हिस्सा परा नहीं हो सकेगा। इसका पूरा दायित्व यूपीए सरकार पर आयेगा। पत्र के अनुसार ऊर्जा मंत्रालय ने घटिया प्रदर्शन किया है तथा ऊर्जा उत्पादन में कमी ने जीडीपी विकास दर को भी प्रभावित किया है। इसका संकेत दिल्ली में गंभीर बिजली संकट में देखा जा सकता है। पत्र के अनुसार राज्यों में भी बिजली की गंभीर समस्या है। पत्र में इस गंभीर मामले पर ऊर्जा मंत्रालय को संवेदनशील बनाने के लिए प्रधानमंत्री और ऊर्जा मंत्री की उच्चस्तरीय बैठक कराने तथा इस संबंध में ऊर्जा सचिव से बात करने की भी बात कही गयी है। सूचना का अधिकार के द्वारा इस पत्र को हासिल करने वाले गुरनेक सिंह बरार के अनुसार ऊर्जा मंत्रालय ने अपनी असफलता को छुपाने के लिए इस संबंध में सूचना देने से इंकार कर दिया है जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने सूचना उपलब्ध करा दी है। श्री बरार इसके खिलाफ अपील करेंगे।

Monday, September 7, 2009

आरटीआइ सिटिजन अवार्ड के लिए आये 28 नामांकन रांची: आरटीआइ सिटिजन अवार्ड के लिए अब तक 28 नामांकन प्राप्त हुए हैं। इनमें रांची, रामगढ़, पाकुड़, धनबाद, कोडरमा, गिरिडीह, पलामू, लातेहार, देवघर, गोड्डा, दुमका से आये नामांकन शामिल हैं। सूचना कानून की चैथी वर्षगांठ पर 10 अक्तूबर 2009 को राज्य के 50 नागरिकों को आरटीआइ सिटिजन अवार्ड दिया जायेगा। झारखंड आरटीआइ फोरम के सचिव विष्णु राजगढ़िया के अनुसार इसके लिए नामांकन 30 सितंबर 2009 तक आमंत्रित हैं। यह सम्मान ऐसे नागरिकों को मिलेगा जिन्होंने सूचना कानून द्वारा ऐसा काम किया हो जिससे नौकरशाहों की गलत प्रवृति पर रोक लगती हो या जिससे कोई भ्रष्टाचार सामने आता हो। साथ ही, कोई जायज काम बिना रिश्वत कराने, जनहित में महत्वपूर्ण काम होने तथा सूचना कानून के प्रचार प्रसार में मदद करने वाले कार्यों के लिए भी सम्मान दिया जायेगा। झारखंड का कोई नागरिक स्वयं अपने लिए अथवा किसी अन्य के लिए नामांकन भेज सकता है। इसके लिए सूचना कानून के तहत किये गये कार्यों, सफलता के विवरण एवं संबंधित दस्तावेजों की फोटो कापी के साथ अपना पूरा पता, फोन नंबर, ईमेल पता इत्यादि भेजना होगा। पता है- झारखंड आरटीआइ फोरम, 4-सी, घराना पैलेस, संध्या टावर, पुरलिया रोड, रांची।
भ्रष्ट अफसरों ने लगाया सूचना कानून में पंचर
विष्णु राजगढ़िया रांची : झारखंड मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश का सहारा लेकर सूचना मांगने वाले नागरिकों का आर्थिक एवं मानसिक भयादोहन हो रहा है। पूर्व मासस विधायक अरूप चटर्जी से एक अधिकारी के एक दिन का वेतन 250 रुपये वसूला गया है। उन्हें 56 पेज की सूचना के लिए 358 रुपये जमा करने पड़े। पाकुड़ के पत्रकार कृपासिंधु बच्चन से आठ पेज की सूचना के एवज में 156 रुपये वसूले गये जबकि नियमत: दो रुपये प्रति पृष्ठ की दर से सिर्फ 16 रुपये लगने चाहिए थे। शेष 140 रुपये इस सूचना को तैयार करने में सरकारी अधिकारी के वेतन के नाम पर अवैध रूप से वसूले गये। पिछले तीन महीने से झारखंड में सूचना के लिए नागरिकों से मनमानी फीस मांगने की शिकायतें मिल रही थीं। अब पता चला है कि मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के एक आदेश से यह समस्या आयी है।

Saturday, September 5, 2009

हर नागरिक कर सकता है बड़े बदलाव : एके सिंह होटल चिनार,रांची में 23 अगस्त 2009 को सिटीजन्स एजेंडा पर सेमिनार में एटीआइ के महानिदेशक श्री अशोक कुमार सिंह के वक्तव्य के मुख्य अंश- विकास का माडल क्या हो तथा सरकारी राशि का आवंटन कैसे हो, इसे हम आज यहां बैठ कर तय नहीं कर सकते। लेकिन हमें यह सोचना है कि एक नागरिक के बतौर कुछ कर सकते हैं या नहीं। मैं उन्हीं बिंदुओं पर बात करना चाहूंगा, जिस पर एक नागरिक पहल से कोई बड़ी भूमिका निभा सकता है। मैं दो उदाहरण देना चाहूंगा, जिसमें एक नागरिक की पहल ने महत्वपूर्ण बदलाव को अंजाम दिया। आगे पढ़ें
The Hoot
Not so funny RTI innovations from Jharkhand Recent reports in Jharkhand suggest that information seekers are told to pay substantial sums in the name of the government staff’s salary. VISHNU RAJGADIA says the state has put its own money-making spin on the RTI Act. thehoot.org

Thursday, August 20, 2009

केके सोन ने सूचना कानून में भरोसा जगाया रांची: अधिकारियों द्वारा सूचना कानून की उपेक्षा के कारण राज्य के नागरिकों को कई बार निराश और परेशान होना पड़ता है। लेकिन रांची के उपायुक्त केके सोन ने रांची जिले में सूचना का अधिकार कानून को पूरी तरह से लागू कराने का भरोसा दिलाकर नयी उम्मीद पैदा की है। झारखंड आरटीआइ फोरम तथा सिटीजन क्लब ने 16 अगस्त को होटल चिनार में सेमिनार किया। इसमें श्री सोन ने कहा कि सूचना का कानून सामाजिक विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है. आप सूचना का अधिकार के जरिये तथ्य सामने लायें और अगर कहीं गलत है तो उसकी जानकारी मुझे दें. श्री सोन ने कहा कि ऐसे मामलों पर एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई करना मेरी जिम्मेवारी है. आप मुझसे पूछ सकते हैं कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई? आगे पढ़ें
RTI Week : 06-12 Oct 09 छह से 12 अक्तूबर 2009 तक आरटीआइ वीक मनाया जायेगा। इस दौरान विभिन्न सरकारी कार्यालयों के सामने सूचना शिविर लगाकर नागरिकों को कानूनी सहायता दी जायेगी। 10 अक्तूबर को राज्यस्तरीय समारोह होगा। इसमें राज्य के 50 नागरिकों को सूचनाधिकार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए आरटीआइ सिटिजन अवार्ड दिया जायेगा। 12 अक्तूबर को राज्यपाल को ज्ञापन देकर राज्य में सूचना कानून के अनुपालन में आनेवाली बाधाएं दूर करने की मांग की जायेगी। झारखंड आरटीआइ फोरम और सिटिजन क्लब ने यह आयोजन किया है। विशेष जानकारी के लिए संपर्क करें- शक्ति पांडेय, मीडिया प्रभारी, झारखंड आरटीआइ फोरम, मोबाइल- 9934109575