Thursday, November 19, 2009
सूचना के अधिकार पर अत्याचार?
मणिकांत ठाकुर
बीबीसी संवाददाता, पटना
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005. बिहार में इस क़ानून के तहत सूचना मांगने वाले लोगों पर भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचार का डंडा बरसने लगा है. यहाँ पंचायत स्तर से लेकर सरकारी विभागों के स्तर तक इस मामले में प्रताड़ना के कई मामले सामने आ चुके हैं. सरकारी योजनाओं में बरती गई अनियमितताओं को दबाने-छिपाने वाला अधिकारी या कर्मचारी वर्ग यहाँ लोगों के सूचना-अधिकार के ख़िलाफ़ हमलावर रुख़ अपना चुका है.
बिहार में तीन साल पहले इस अधिनियम को लागू करते समय दिखने वाली सरकारी तत्परता की देश भर में सराहना हुई थी. आज स्थिति उलट गई लगती है. कारण है कि अब इसी राज्य में नागरिकों के सूचना-अधिकार का हनन सबसे ज़्यादा हो रहा है.
दूसरी ओर शिकायतों की भरमार से घबराए मुख्यमंत्री ने कुछ फौरी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर- 2219435 जारी करते हुए ख़ुद टेलिफ़ोन पर पहली शिकायत (संख्या 001) दर्ज कराई.
टेलिफ़ोन पर मुख्यमंत्री ने लिखाया- मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना मिली है कि वीरेंद्र महतो, ग्राम- कसियोना, पंचायत- करैया पूर्वी, प्रखंड- राजनगर, ज़िला- मधुबनी द्वारा करैया के प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी से जन वितरण प्रणाली की दुकानों में राशन- किरासन आपूर्ति का ब्यौरा माँगा गया था. इस पर उनको धमकी दी गई, जो राजनगर पुलिस थाना में केस संख्या 181/09 दिनांक 10-08-09 दर्ज किया गया है. इस मामले की पूरी जांच करके मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना दी जाए.
समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर एक नरम किस्म की ही शिकायत दर्ज कराई. गंभीर किस्म की शिकायतें तो आम लोगों के बीच जाने पर मिलती हैं.
कहीं मुखिया और पंचायत सेवक, तो कहीं प्रखंड, अनुमंडल और ज़िला स्तरीय पदाधिकारी सरकारी योजना राशि में लूट मचाते हुए मिलते हैं. लेकिन इन्हें पकड़ेगा कौन? सब जानते हैं कि नीचे से ऊपर तक का सरकारी महकमा लूट में शामिल रहता है. ऐसे में सूचना के अधिकार के तहत कोई आम आदमी अगर घोटाले का राज़ खोलने वाली जानकारी मांगेगा तो लुटेरों के बीच खलबली होगी ही.
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त अशोक कुमार चौधरी फिर भी नहीं मानते कि कोई लोक सूचना पदाधिकारी किसी सूचना माँगने वाले को जेल भेजने की धमकी देता होगा या किसी सरकारी फ़ाइल को ग़ायब करता होगा. लेकिन उन्होंने कुछ शिकायतों को स्वीकार करते हुए कहा, "इस क़ानून के प्रावधानों की सही समझ अभी पूरी तरह न तो लोक सेवकों में है और न ही सूचना मांगनेवाले लोगों में. सबकुछ दुरुस्त होने में कुछ वक़्त लगेगा. जहाँ तक प्रताड़ना कि बात है तो ऐसी निश्चित और सही शिकायत अगर आयोग को मिलेगी तो उसे कार्रवाई के लिए सरकार के पास ज़रूर भेजा जाएगा."
सूचना अधिकार मामलों से जुड़ी एक गैर सरकारी संस्था की प्रमुख परवीन अमानुल्लाह का कहना है कि भ्रष्ट सरकारी अफ़सरों और कर्मचारियों का ऐसा गिरोह बन गया है, जो इस क़ानून को बेअसर बनाने पर तुला हुआ है. परवीन कहती हैं, "अगर कोई आम आदमी सूचना पाने के अपने हक़ का डटकर इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे डरा-धमका कर ख़ामोश करानेवाले सरकारी अधिकारी फ़ौरन सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए दोषी पाए जाने पर भी उन पर सख़्त कार्रवाई नहीं होती. मैंने 45 ऐसे मामलों की जानकारी राज्य सरकार को बहुत पहले दी थी, लेकिन उस पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ."
यहाँ उल्लेखनीय है कि परवीन अमानुल्लाह बिहार के एक बड़े आईएएस अधिकारी अफज़ल अमानुल्लाह की पत्नी हैं. इन्होंने एक भेटवार्ता में बीबीसी से खुलकर कहा कि राज्य की शासन व्यवस्था में भारी गड़बड़ी है और यहाँ अधिकांश नौकरशाह भ्रष्ट हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने भाषणों में ज़रूर कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है और मालिक की मांगी गई सूचना नहीं देने वाले नौकर यानी अधिकारी बख्शे नहीं जाएँगे. लेकिन होता है उल्टा. प्रताड़ित जनता हो रही है और नेता-अधिकारी फल-फूल रहे हैं.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/11/091121_bihar_rti_pp.shtml?s
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment